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केंचुआ खाद के बारे में सम्पूर्ण जानकारी || Complete information about vermicompost || RBF 

केंचुआ खाद के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

  • केंचुआ की खाद या वर्मीकम्पोस्ट पोस्क तत्वों से भरपूर एक सर्वोत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ वगैरह कीड़ों के माध्यम से वनस्पतियों व भोजन के कचरे वगैरह को विघटित करके बनाई जाती है।
  • केचुँआ खाद में दुर्गन्ध नहीं होती है और मक्खी व मच्छर नहीं बढ़ते है सथ ही पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु परिपूर्ण सक्रिय रहते हैं। केचुँआ खाद डेढ़ से दो महीने के अंदर तैयार हो जाती है।

केंचुआ खाद की प्रमुखताएँ : केचुँआ खाद में सूक्ष्म पोषित तत्वों के साथ-साथ केचुँआ खाद के अन्दर 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।

·         केचुँआ खाद को तैयार करने में एक से डेढ़ महीने का समय लगता है।

·         केचुँए का एक टन खाद को तैयार करने के लिए 100 वर्गफुट की जगह काफी रहती है |

·         केचुँए खाद 1 एकड़ में 700kg से 1000kg की मात्रा में आवश्यक है।

 

केचुँए सेन्द्रिय पदार्थ व मिट्टी खाने वाले जीव होते है जो सेप्रोफेगस श्रेणी में आते है। इस श्रेणी में दो प्रकार के केचुँए होते हैं :-

  • (1) डेट्रीटीव्होरस - डेट्रीटीव्होरस जमीन के ऊपरी परत पर पाये जाते है। ये केचुँए लाल चाकलेटी रंग व चपटी पूँछ के होते है| इन केचुँओ का मुख्य परयोग खाद बनाने में होता है। ये केचुँए ह्यूमस फारमर केचुँए कहे जाते है।
  • (2) जीओफेगस - जीओ फेगस केचुँए भूमि के अन्दर पाये जाते है। ये केचुँए रंगहीन सुस्त रहते हैं। ये ह्यूमस व मिट्टी का मिश्रण बनाकर जमीन को नरम व पोली करते है।

 

Earthworm

केंचुआ खाद को कसे बनाए :-

·         जिस कचरे से केचुँआ खाद तैयार करनी  है उस कचरे मे से कांच,पत्थर व अन्य किसी धातु के टुकड़े अलग करना बहुत जरुरी हैं।

·         केचुँआ को आधा डीकम्पोस्ट पदार्थ खाने को दिया जाता है।

·         जमीन  के ऊपर रेत का  बेड तैयार करें, बेड को लकड़ी से हल्के से पीटकर पक्का एवं समतल कर लें।

·         इस बेड पर 6-7 cm (2 से 3 इंच) मोटी बालू रेत या बजरी बिछायें।

·         बालू रेत की इस परत पर 6 इंच मोटी दोमट मिट्टी बिछायें। दोमट मिट्टी न मिले तो काली मिट्टी में रॉख मिलाकर बिछायें।

·         इस पर आसानी से गलने वाले पदार्थ डाले जसे की (नारीयल की बूछ, गन्ने के पत्ते, ज्वार के डंठल व अन्य पदार्थ) इन चीजो की दो इंच मोटी सतह बनाई जाए।

·         इसके ऊपर 2 से 3 इंच पकी हुई गोबर की खाद डाले।

·         केचुँओं को डालने के बाद इसके ऊपर गोबर व  पत्ती आदि की 6 से 7 इंच की सतह बनाए। फिर इसे मोटी टाट् पट्टी से ढक दे।

·         टाट पट्टी पे जरुरत के अनुसार रोजाना पानी छिड़कते रहे, जिसे 40 से 50 प्रतिशत नमी बनी रहे। नोट :- अधिक नमी या गीलापन ना होने दे इससे हवा ब्लोक हो जागी जिसे सूक्ष्म जीवाणु तथा केचुएं काम नहीं कर सकेगे या केचुएं मर भी सकते है।

·         रेत के बेड का तापमान 25 से 30 डिग्री होना चाहिए।

·         रेत के बेड में गोबर की खाद जम जाये या कड़क हो जाये तो इसे हाथ से तोड़ दे, हफ्ते में एक बार रेत के बेड का कचरा ऊपर नीचे करते रहे।

·         30 दिन बाद छोटे छोटे केंचुए दिखना शुरू हो जाएगे।

·         31 वें दिन रेत के बेड पर कूड़े-कचरे की 2 इंच सतह बिछायें और उसे हल्का गिला करें।

·         इसके बाद हर हफ्ते दो बार कूडे-कचरे की सतह पर नई सतह बिछाएं। और सतह पर पानी छिड़क कर नम करते रहें।

·         3से4 सतह बिछाने के 2से3 दिन बाद उसे हल्के से ऊपर नीचे करते रहे और नमी बनाए रखें।

·         फिर 40 दिन बाद पानी छिड़कना बंद कर दें।

·         इस तरीके आप का  डेढ़ महीने में खाद बनकर तैयार हो जाए गा यह खाद चाय पति के पाउडर जैसा दिखे गा व इसमें मिट्टी के जसे बदबू  होती है।

·         उपर से खाद निकाले व खाद के छोटे-छोटे ढेर बना ले। जिससे केचुँए खाद की निचली परत में रह जाएगे।

·         खाद को हाथ से अलग करे। गैती, कसी या खुरपी का उपयोग न करें।

·         केंचुए पहले से बढ़ जाएगे आधे केंचुओं से वही प्रक्रिया दोहरायें और बाकि आधे केंचुए से नया रेत का बेड बनाकर खाद बनाएं।इस तरह से आप हर 50-55 दिन के बाद केंचुए की संख्या के अनुसार नये बेड बना सकते हैं|


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केंचुआ और केंचुआ खाद के लाभ

·         केचुँए से जमीन की गुणवत्ता अच्छी होती है।

·         जमीन की जलधारण क्षमता अच्छी होती है।

·         जमीन का उचित तापक्रम बनाये रखता है|

·         जमीन से पानी का भाप बनकर उड़ना कम होगा।

·         सिंचाई में पानी की बचत होगी।

·         जमीन में सहायक जीवाणुओं की तादात में भ्डोत्री होती है।

किसानो की दृष्टि से

·         जमीन में सिंचाई के समय में इज़ाफ़ा होता है।

·         रासायनिक खाद की अवस्कता कम होती है|

वातावरण की दृष्टि से

  • जमीन के जलस्तर में इज़ाफ़ा होती है।
  • मिट्टी व खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के दवारा होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
  •  कचरे का प्रयोग खाद बनाने में करने से बीमारिया कम होती है।


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