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कपास
में होने वाली सफेद मक्खी की पूरी जानकारी

 

कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत जादा होता है यह एसा किट है जो कपास की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुचाता है इस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की इसके प्रकोप से कपास की फसल लगभग 50 से 60 प्रतिशत तक फसल में नुकसान हो जाता है इसके अलावा कपास में बहुत से अन्य कीटो का भी प्रकोप होता है जिससे का उत्पादन प्रभावित होता है इस में हरा तेला,मिली बग,चुरडा,चेपा आदि है|

·        सफेद मक्खी कीट किया है / सफेद मक्खी का फसल में नुकसान

सफ़ेद मक्खी कपास के सर्वाती दिनों से लेकर च्चुगाई कटाई के समय तक फसल में रहती है। कपास के अलावा सफ़ेद मक्खी खरीफ मौसम की 110 से भी अधिक फसल पौधों पर सफ़ेद मक्खियों का प्रकोप रहता है| सफेद मक्खियों के शिशु और प्रौढ़ दोनो ही पत्तियों के निचले हिसे पर चिपके रहकर रस चूसते रहते हैं। प्रौढ़ 1-1.5 मि.मी. लम्बे, सफेद पंखों पीले शरीर के होते हैं। शिशु हल्के पीले, चपटे रंग के होते हैं।

·        सफ़ेद मक्खी फसल को दो तरह से नुकसान पहुंचाती हैं।

एक तो रस चूसने की वजह से पौधा कमजोर पड़ जाता है। पोधा सुकने लग जाता है

दूसरा ये पत्तियों पर बेठ के चिपचिपा पदार्थ छोडते है जिसकी वजह से, पोधे की पतियों पर काली फफूंद उग जाती है। जो कि पौधे के भोजन बनाने की प्रक्रिया में बाधा बन जाती है। सफेद मक्खी कपास में मरोडिय़ा रोग को फैलाने में भी सहायक है। इसका प्रकोप अगस्त-सितंबर के महीने में ज्यादा होता है। जिनसे पौधे की बढ़वार रुक जाती है| और इसका सिदा असर उत्पादन (पैदावार) पर होता है।

 

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·       आप सफेद मक्खी की पहचान कसे करे|

सफेद मक्खी छोटा सा तेज उडऩे वाला पीले शरीर और सफेद पंख का कीड़ा होता है। यह छोटा एवं हल्के होने के कारण हवा द्वारा एक-दूसरे स्थान तक आसानी से पहुच जाते हैं। सफेद मक्खियों के अंडाकार शिशु पत्तों की निचली परत पर चिपके रहकर पतियों का रस चूसते रहते हैं। भूरे रंग के शिशु अपनी अवस्था पूरी होने के बाद वहीं पर ये प्यूपा में बदल जाते हैं। जिस पौधे पे सफेद मक्खी का प्रकोप हो गा वह पोधे पीले तैलीय दिखाई देते हैं जिन पर काली फंफूदी लग जाती है। यह कीड़े रस चूसकर फसल को नुकसान पहुचाते हैं|

 

अगस्त-सितंबर में सफेद मक्खियों के  नियंत्रण के लिए इन दवाओं का प्रयोग करे  / कपास में सफेद ,मक्खियों  की दवाई :-

अगस्त महीने के 15-20 दिन के बाद सफ़ेद मक्खी का विकास निमन कीटनाशकों से रोका जा सकता है| जैसे डाईफेन्थाईयूरान (पोलो) नामक दवा का 200 ग्राम मात्रा, फ्लोनिकामिड 50 डब्ल्यूजी दवा की 80 ग्राम मात्रा, डाईनॉटिफेयूरान 20 प्रतिशत एसजी की 60 ग्राम मात्रा क्लोथियानिडिन 50 डब्ल्यूजी की 20 ग्राम मात्रा को प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी में घोलकर फसल में छिडक़ाव कर सकते हैं। ये कीटनाशक सफेद मक्खियों के लिए कारगर हैं| और पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं। सीजऩ के बाद यानी 15 सितंबर के बाद सफेद मक्खियों के प्रबंधन के लिए इथिऑन की 800 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से सीमित मात्रा में प्रयोग करने की सलाह दी गई है।


एडवाइजरी में यह भी बताया जाता है| कि यदि अंडे और निम्फ की फसल में अधिक आबादी के कारण पत्तियों के नीचे थैली कवक दिखाई देता है, तो किसान स्पाइरोमेसिफेन की 250 मि.ली. या पायरीप्रोक्सीफेन दवा की 400 से 500 मि.ली. या ब्यूप्रोफेजिन 25 एससी की 400 मि.ली. मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं।

 

·        नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग

कपास की फसल सफेद मक्खी 70 दिन बाद तक नियंत्रण बुवाई के 70 दिन बाद तक, किसान एक इमल्शन के दो स्प्रे कर सकते हैं, जिसमें एक प्रतिशत नीम का तेल और 0.05 से 0.10 प्रतिशत कपड़े धोने का डिटर्जेंट, या निम्बीसीडीन (0.03 प्रतिशत या 300 पीपीएम) शामिल है। यह इमल्शन एक लीटर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया के बाद एक अन्य इमल्शन के दो स्प्रे करने होंगे, जिसमें कैस्टर ऑयल और 0.05 से 0.10 प्रतिशत कपड़े धोने वाला डिटर्जेंट शामिल है। किसानों को पूरे सीजन के दौरान, जब भी आवश्यक हो, नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करते रहना चाहिए।

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·         कृषिविभाग के सहायक पौधा संरक्षण अधिकारी विशेषयग्य  ने बताया कि सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए नीम का तेल 1 लीटर प्रति एकड़ या डाईफेन्थ्रोन 325 ग्राम प्रति एकड़ या बुफरोफेजीन 400 मिली लीटर का 200 लीटर पानी में घोल तैयार कर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें।


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